Friday, August 25, 2006

दोस्त की कामयाबी

किसी दोस्त की कामयाबी को देख के खुशी होती है या जलन? कुछ कुछ दोनो होता है, पर दोस्त जब बहुत ज्यादा कामयाब हो जाता है तो दूरियाँ बढ़ने लगती हैं। कुछ उसी तरह की चीज़ है कि जो चीज हम हासिल नहीं कर सकते हैं उसके बारे में मन बनाना पड़ता है कि हमें तो उसकी जरूरत ही नहीं है। अक्सर होड़ करने के बजाय इंसान ऐसी हालत में हथियार ही डाल के विमुख होने का नाटक करता है और अंततः विमुख हो जाता है।


जिन चीजों का शौक बचपन में होता है बड़े हो कर वही शौक पता नहीं क्यों मर जाते हैं। इसके बारे में किसी ने कहा है कि जब आप पहली बार किसी दुकान पर गोलगप्पे खाने जाते हैं और गोलगप्पे अच्छे लगते हैं तो दुबारा आने का मन करता है। लेकिन अगली बार आने पर गोलगप्पे उतने अच्छे नहीं लगते जितना पहली बार। क्यों, कि पहली बार कुछ उम्मीद नहीं थी, दूसरी बार उम्मीद थी।

भारत में जातिवाद को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका है अपनी जात के बाहर शादी करना। रेखा, जया दोनो ही मेरी जात के नहीं थे। पर जब अपनी शादी की बात आती है तो सभी की सिट्टी पिट्टी गुम हो जाती है, बगलें झाँकने लगते हैं, कि आप जिससे कहेंगे उसी से शादी कर लूँगा, मेरी कोई इच्छा नहीं है। फिर यही लोग शेर बन के दहाड़ते हैं कि भारत में जातिवाद है, यह सब बातें सिर्फ फिल्मों में होती हैं, असली दुनिया में इनके लिए कोई जगह नहीं है। ये कहो कि तुम्हारे अंदर हिम्मत नहीं है। दरअसल सच, फिल्मों से भी ज्यादा मधुर, ज्यादा कड़वा और ज्यादा आश्चर्यजनक होता है, इसके कई उदाहरण मेरे सामने हैं।

अपने दिल का दर्द किसी और को कहना कमजोरी है। इसलिए हम अपने दिल का दर्द किसी को नहीं कहते। दुनिया के लिए तो हम बस पैसे वाले,सफल इंसान हैं, जो बहुत खुश है। लेकिन किसी का दिल किसने देखा है और किसी के दिल की बात किसने सुनी है, और सुनी भी है तो कहाँ पहचानी है। सिटिजन केन नाम की एक फिल्म है जिसमें एक बहुत सफल, बहुत अमीर इंसान की कहानी है। उसे बचपन में अपने घर से ले जाया जाता है और फिर पाला पोसा जाता है अमीरी में, माता पिता से दूर। जिस समय उसे ले जाया गया वह कुछ स्कीइंग कर रहा होता है, और स्की का नाम था रोजबड। वह उससे छीन ली जाती है क्योंकि उसे ले जाना था या ऐसा ही कुछ। एकदम अमीरी में मरते वक्त वह एक ही शब्द कहता है, रोजबड। उस समय यह समझने वाला उसके आस पास कोई नहीं था जिसे पता होता कि रोजबड है क्या चीज। कहानी थोड़ी गलत हो सकती है, लेकिन दुखभरी कहानी थी। अपने चेहरे पर रोज मुस्कान ला पाना एक बहुत बड़ी बात है। मुस्कान आ गई तो जीवन सफल है।

मेरे एक दोस्त का हाल ही में तलाक हुआ है। शायद मेरे बाप के जमाने में उनके दोस्तों के तलाक नहीं हुआ करते थे, लेकिन मैं अब चार दोस्तों को जानता हूँ जिनके तलाक हो चुके हैं। उसने मुझसे पूछा कि मैं क्या करूँ अब, आगे कैसे बढ़ूँ। मुझे समझ नहीं आया कि अब क्या कहूँ, ऐसे सवाल कोई रोज तो नहीं पूछता है। फिर याद आई बचपन में पढ़ी कविता, नीड़ का निर्माण फिर फिर। चिड़िया फिर घोंसला बनाती है। और रहती है उसमें। शायद ऐसे ही कुछ शब्दों की जरूरत थी उसे। मैंने यह नहीं पूछा कि तलाक क्यों हुआ, क्या पूछता। शायद वह और मैं लड़की होते तो ज्यादा बात होती इस बारे में।

अपने लिखे को दुबारा पढ़ता हूँ तो लगता है कि क्या लिखा है मैंने, क्या यही मैं हूँ? शायद यही हूँ मैं, लेकिन क्या मैं ऐसा ही मैं अपने लिए परिकल्पित करता हूँ?

5 comments:

Kalicharan said...

very interesting monologue.

विजय वडनेरे said...

वाह! नाम भी वही है..और ..अपने दोस्तों के नाम भी वही लिख रखे हैं...!!

हाँय..!!?!!

लाल सिंह भाटी जैसलमेर said...

प्रभु मन की बात पे कुछ एक राजस्थानी मे कहावत है वो बता दु
॥गुगे मन सपनों भयो ॥
इस का मतलब है गुगा आदमी जब कुछ सोचता है तो वो मन मे सोचता है कि गुगे मन का सपना किसको बताऊ कोन सुनेगा मन अपने कि बात बस भगवान ही सुन या समझ सकता है मन की बात जैसे मे सोचता हूँ बस मन मे रख के बैठा हूँ जब आप आएगे तो बताएगे आप इस बलोंग पे कब आओगे ये मुझे तो पता नहीं बस लिखता रहूगा जब भी आएगे

लाल सिंह भाटी said...

प्रभु कुछ अक्षर त्रुटी हो गया है फिर लिख देता हूँ
गुगे मन सपणो भयो केना का कुण शुणे मन अपणे री बात

लाल सिंह भाटी said...

प्रभु आपने लिखा कि जातीवाद को खतम करने का अच्छा तरीका है लेकिन मीडिया वाले एसी एसी बातें छाप देते है कि जातिवाद और बढ़ जाता है